July 21, 2025

जहां 10 साल से जिंदा है लकड़ी का पुल, वहीं कंक्रीट की पुलिया सिर्फ 6 महीने में ढही

1 min read

रोशन लाल अवस्थी की कलम से

धनोरा। आज से 10 साल पहले धनोरा ग्राम पंचायत के पतेल पारा मार्ग पर एक सरकारी पुलिया बनाई गई थी, लेकिन मात्र 6 महीने में ही उसका कंक्रीट उखड़ गया और पुलिया जर्जर हो गई। इससे गांव वालों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा।

गांव के लोगों ने प्रशासन से कोई मदद न मिलने पर खुद ही जंगल से लकड़ी लाकर एक अस्थायी पुल का निर्माण किया, जो आज 10 साल बाद भी मजबूती से खड़ा है। ग्रामीणों का कहना है कि जब सरकारी पुलिया लाखों रुपये खर्च करने के बावजूद चंद महीनों में ही टूट गई, तो यह सवाल उठता है कि क्या कंक्रीट से ज्यादा टिकाऊ लकड़ी है, या फिर सरकारी निर्माण कार्यों में लापरवाही और भ्रष्टाचार जिम्मेदार है?

10 साल से सुरक्षित है ग्रामीणों का लकड़ी का पुल

पटेल पारा से धनोरा जाने के रास्ते में एक छोटे नाले को पार करना लोगों के लिए बड़ी चुनौती बन गया था। स्कूल जाने वाले बच्चों से लेकर रोजमर्रा की जरूरतों के लिए आने-जाने वाले ग्रामीणों तक सभी को इस पुलिया की जरूरत थी। सरकारी पुलिया के असफल होने के बाद ग्रामीणों ने खुद मिलकर लकड़ी का पुल बनाया, जो अब तक सुरक्षित बना हुआ है।

सरकारी पुलिया पर 6 लाख खर्च, फिर भी टिक न सकी

सरकार ने इस पुल के निर्माण में करीब साढ़े 5 से 6 लाख रुपये खर्च किए, लेकिन घटिया निर्माण के चलते यह 6 महीने में ही जवाब दे गया। वहीं, ग्रामीणों ने बिना किसी सरकारी मदद के, मात्र अपने श्रमदान से एक ऐसा पुल तैयार कर दिया, जो एक दशक से लोगों की जरूरतें पूरी कर रहा है।

सरकार से लकड़ी के पुलों को बढ़ावा देने की मांग

ग्रामीणों का कहना है कि यदि लकड़ी का पुल 10 साल तक मजबूती से टिका रह सकता है, तो सरकार को भी इस तरह के टिकाऊ और किफायती निर्माण पर विचार करना चाहिए। यह मामला सरकारी निर्माण कार्यों की गुणवत्ता और पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े करता है।

अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस मुद्दे पर क्या कदम उठाता है और क्या भविष्य में गांवों में टिकाऊ, किफायती और सुरक्षित पुलों के निर्माण की दिशा में कोई ठोस नीति बनाई जाती है या नहीं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *