बस्तर के भोपालपट्टनम की जमींदारी का अनसुना इतिहास
1 min readवरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडे की कलम से.. {किश्त 267}

बस्तर में मध्यकाल से लेकर रियासत काल तक शासन संचालन में जमींदारियोँ की बेहद ही महत्वपूर्ण भूमिका रही है। बस्तर में फोतकेल, पामेड,कुटरू,भोपालपट्टनम सुकमा,चिंतलनार, कोत्ता पली ,परलकोट प्रमुख जमींदारियां रही है। इनमे कुटरू सबसे बड़ी जमींदारी रही तो फोतकेल सबसे छोटी।चालुक्य शासन से पूर्व बस्तर के नाग राजाओँ ने बस्तर को गढ़ों में विभाजित कर नायकों को नियुक्त किया था। जमींदारियों का विकास चौदहवीं सदी में वारंगल से आए अन्नमदेव के बस्तर पदार्पण के साथ हुआ। वारंगल में तुगलकी आक्रमण से काकतीय साम्राज्य छिन्न भिन्न हो चुका था। वारंगल के शासक प्रतापरुद्र काकतीय बुरी तरह से परास्त हो चुके थे। अनुज अन्नमदेव ने पड़ोसी चक्रकोट (बस्तर) में प्रवेश कर साम-दाम-दण्ड -भेद के माध्यम से अपना शासन स्थापित किया। चक्र कोट के नागवंशियोँ की महान विरासत आपसी सामंजस्य, कमजोर नेतृत्व के कारण पतन की ओर बढ़ रही थी।अन्नमदेव ने इन्हीँ कमजोरियों का ही फायदा उठा कर बस्तर के बड़े क्षेत्र पर अधिकार जमा लिया।अन्नमदेव के साथ कुछ प्रमुख सहयोगी, सेवा दार भी वारंगल से यहां आए थे। जिन्हे सेवा के बदले जमींदारी दे उपकृत किया। अन्नमदेव के एक प्रमुख सहयोगी थे नाहर सिंह भोई। नाहर सिंह भोई अन्नमदेव महाराज के पालकी वाहक थे। उन्होंने पालकी में अन्नमदेव महाराज को बैठाकर चक्रकोट (बस्तर) में प्रवेश किया था। अनुश्रुति प्रचलित है मार्ग में एक बड़ा अजगर अचानक सामने आ गया था तब नाहर सिंह ने अजगर को हटा मार्ग प्रशस्त किया था, इस कारण इन्हें पामभोई की उपाधि दी गई। पाम अजगर को कहा जाता है।नाहर सिंह,उसके पूर्वजों ने काकतीय शासकों की बहुत सेवा की थी। उन पर होने वाले आक्रमण का वीरता पूर्वक सामना किया था। इन सभी सेवाओं के बदले नाहर सिंह को अन्नमदेव महाराज ने भोपालपट्टनम का जमींदार बनाया।(संदर्भ बस्तर भूषण-केदारनाथ ठाकुर, बस्तर का मुक्ति संग्राम-हीरालाल शुक्ल) इंद्रावती-गोदावरी के तट पर स्थित भोपालपट्टनम नागयुग में चक्रकोट राज्य का मुख्य बंदरगाह था। पटनम दक्षिण भारतीय शब्द है जिसका अर्थ है बंदरगाह , वहीँ भोपाल, भूपाल के अपभ्रंश से बना है। इसका शाब्दिक अर्थ है राजा का बंदरगाह। वर्तमान में 19ईस्वी में बना विशाल राजमहल है जो खंडहर में परिवर्तित हो चुका है। वर्तमान में भोपालपट्टनम बीजापुर जिले में तेलांगाना और महाराष्ट्र की सीमा पर स्थित मुख्य कस्बा है। यह सड़क मार्ग से तेलंगाना-महाराष्ट्र से जुड़ा है।