छ्ग में मराठा शासन,जमींदारों सहित आम लोगों की बसाहत…
1 min read
वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडे की कलम से …किश्त 253}
छत्तीसगढ़ में मराठा शासन स्थापित होने के साथ ही मराठा जमींदार,आम लोग छ्ग में आना शुरू किया था,तात्यापारा रायपुर,धमतरी,राजिम,अन्य शहरों में बसने का क्रम तेजी से शुरू हुआ, हालांकि मराठी भाषी पहले भी छ्ग में रहते थे पर संख्या गिनी चुनी थी, छग के राजनीतिक इतिहास में 1741 परिवर्तन का काल माना जाता है।भास्कर पंत थे भोंसला शासक के सेना पति।नागपुर के भोंसला, भास्कर पंत ने जब रतनपुर राज्य पर आक्रमण किया, तब रघुनाथ सिंह रतनपुर के शासक थे। वे 60 वर्ष के थे, इकलौते बेटे की मृत्यु होने के कारण बहुत ही पीड़ित थे। युद्ध करने की मानसिक स्थिति नहीं थी, उन्होंने आत्म समर्पण कर दिया,1741 से 1758 तक मोहनसिंह नामक़ व्यक्ति को नया शासक नियुक्त किया गया।उसकी जब मृत्यु हुई, भोंसला ने अपना शासन स्थापित किया। छग के पहले मराठा शासक बिम्बा जी भोंसला हुए। रायपुर शाखा में उस वक्त अमर सिंह, हैदयवंश के शासन कर रहे थे। उनको राजिम रायपुर, पाटन के परगने देकर मराठा 7 हजार रु वार्षिक लेने लगे। अमर सिंह की मृत्यु के बाद बेटा शिव राज सिंह राजा बना,भोंसले ने जागीरें छीन कर उसे 5 गाँव देकर 1757 में रायपुर में अपना प्रत्यक्ष शासन स्थापित किया।यह शासन 1854 तक चलता रहा ।बिम्बोजी भोंसला के काल में रायपुर, रतनपुर में संगीत एवं साहित्य का विकास हुआ। भवन- निर्माण हुआ, रायपुर का दूधाधारी मंदिर उनके ही सहयोग से बना था। रतनपुर की रामटेकरी पर राम मन्दिर का निर्माण भी कर वाया। इसीलिये वे अत्यन्त लोकप्रिय हो गये राजनीति में जो परिवर्तन लाया गया,लोगों ने स्वीकार कर लिया।बिम्बोजी भोंसला ने रतनपुर और रायपुर को प्रशासनिक दृष्टि से राज्य बनाकर उसे छत्तीसगढ़ राज्य की संज्ञा प्रदान की।मराठी संस्कृति की कुछ चीजें छत्तीसगढ़ में भी प्रचलित हो गई,जैसे विजया दशमी पर्व पर “सोने का पत्र” देना। छत्तीसगढ़ में मराठी, मोड़ी,उर्दू भाषा का प्रयोग बिम्बोजी ने करवाया। इसी कारण छग में मराठी बोलने वालों की सँख्या अभी भी काफी है। उर्दू भाषा समझने वाले लोग काफी सँख्या में है।रतनपुर राज्य का प्राचीन वैभव धीरे – धीरे खत्म हो रहा था।बिम्बोजी की मृत्यु के बाद व्यंकोजी राजा बने, उन्होनें नागपुर से छग का शासन चलाने का निश्चय किया।पहले राजधानी रतनपुर में रहकर ही शासन किया जा रहा था। धीरे-धीरे नागपुर बन गया छग की राजनैतिक गतिविधियों का केन्द्र। रतनपुर का राजनीतिक परिचय भी धीरे-धीरे समाप्त हो गया। छग के शासन को नये भोंसला राजकुमार ने सूबेदार के माध्यम से चलाने लगे। इसी तरह छग में भी सूबेदार की परम्परा शुरु हुई।”सूबा-सरकार”। रतन पुर था सूबेदार का मुख्या लय पूरे क्षेत्र का शासन यहीं से संचालित होता था।यह प्रणाली 1787 से 1818 तक चलती रही।यूरोपीय यात्री कैप्टन ब्लंट 1795 में रतनपुर- रायपुर में आये थे।उनका कहना था रतनपुर एक बिखरता हुआ गाँव प्रतीत हुआ जहाँ लगभग एक हज़ार झोंपड़ियाँ थी (अरली यूरोपियन ट्रेवला, पृ.120)।इससे पता चलता है, रतनपुर के विकास की ओर कोई भी ध्यान नहीं दे रहा था। कैप्टन ब्लंट के अनुसार रायपुर एक बड़ा शहर प्रतीत हुआ जहाँ लगभग 3 हज़ार मकान थे, ऐसा लगता है कि रायपुर बहुत पहले से ही एक बड़ा शहर था, इसीलिये शायद अँग्रेजों ने रायपुर को छग की राजधानी बनाया। “सुबा सरकार” स्थापित कर मराठा शासक उसके माध्यम से ही धन वसूल कर नागपुर भेजा करते थे । छग के हितार्थ शासन की स्थापना नहीं हुई थी।एक तरीका था जिसके माध्यम से मराठा शासक किसानों को सरकार पर आश्रित रखते थे, पैसों के स्थान पर ‘कर’ के रुप में किसानों से अनाज लिया जाता था।अनाज की बिक्री की कोई उचित व्यवस्था नहीं थी। छग का अनाज नागपुर भेजा जाता था।यातायात की कठिनाई के लिए दूसरी जगह ले जाने में बहुत ज्यादा खर्च होता था। किसान जब अपने गाँव में ही अनाज बेचते तो उन्हें उचित मूल्य नहीं मिलता था। सूबा शासन के दौरान यहां के लोग कठिनाईयों से परेशान हो गये। अंकोजी भोंसला के बाद रघुजी द्वितीय अप्पा साहब,उन्होंने कभी भी जनशिक्षा, सुरक्षा की जरुरतों की ओर ध्यान नहीं दिया। उनकी तो मूल प्रवृत्ति सैनिक थी।असल में वे हमेशा युद्धों में फँसे रहते थे और इसीलिये जनता के बारे में सोचने के लिए जो वक्त चाहिये, उनके पास नहीं था। छत्तीसगढ़ी के ज्यादातर लोगों की जीविका का आधार कृषि था उपज चावल,गेहूँ, चना, कोदो, दाल थी, पर अनाज की बिक्री सही व्यवस्था न होने के कारण किसान परेशान थे। समस्या थी कि यहाँ के कृषक बहुत जल्दी स्थान को छोड़ कर दूसरे स्थान को चले जाते थे।कारण कृषि योग्य भूमि का समुचित विकास नहीं हो सका। एक समस्या यह थी,साहूकारों से ॠण लेने के लिए किसान को अपनी जायदाद गिरवी रखनी पड़ती थी। इसीलिए बहुत जल्दी उनकी ज़मीन बेदखल हो जाती थी।भौगोलिक सीमा की दृष्टि से अगर देखा जाये तो छत्तीसगढ़ चारों ओर पर्वतों से घिरा हुआ है। इसका मध्य भाग है मैदानी। इसीलिये यहाँ प्रकृति के निकट रहने वाले की सँख्या को प्राकृतिक सुरक्षा प्राप्त है। छग में नाग रिक सभ्यतायें दिखती है और साथ-साथ आख्यक सभ्यतायें देखने का अवसर मिलता है।
मराठा शासन का अंत,
ब्रिटिश नियंत्रण शुरू…
1818 में तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध में पराजय के बाद छत्तीसगढ़ में मराठा शासन समाप्त हो गया इस युद्ध के बाद नागपुर की संधि के साथ छत्तीसगढ़ के रूप में ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया |ब्रिटिश रेजिडेंट जेन्स ने नागपुर राज्य में व्यवस्था की घोषणा की, जिसके कारण उन्हें रघुजी त्रितये के वयोवृद्ध होने के कारण नागपुर राज्य अपने हाथ में ले लिया गया| इस घोषणा के साथ ही छग में भी ब्रिटिश नियंत्रण लागू कर दिया गया।